दिल्ली : हाल ही में अहमदाबाद में एयर इंडिया के विमान के भयानक हादसे के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ी आसानी से कह दिया कि यह एक दुर्घटना थी, दुर्घटना को कोई नहीं रोक सकता। लेकिन जिस तरह से यह हादसा हुआ, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल इसलिए उठता है क्योंकि ऐसा हादसा होना नामुमकिन लगता है और इसलिए भी क्योंकि जब देश में ऐसे दर्दनाक हादसे होते हैं, तो कोई भी मंत्री या सरकार इसकी ज़िम्मेदारी क्यों नहीं लेती? चाहे वह विमान हादसा हो, ट्रेन हादसा हो, सड़क हादसा हो या पानी में कोई बड़ी दुर्घटना हो।
सवाल यह भी है कि जब मंत्री और सरकार शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक का श्रेय अपनी जेब से एक पैसा खर्च किए बिना ले लेते हैं, तो फिर किसी भी हादसे की ज़िम्मेदारी मंत्री या सरकार क्यों नहीं लेते? हद तो तब हो जाती है जब उन पार्टियों के नेता चुनावों में सरकारी कामों को भी भुना लेते हैं, फिर चाहे छोटा से छोटा काम उनकी पार्टी की सरकार में ही क्यों न हुआ हो। जबकि सरकार के पास जो भी पैसा है, वह जनता की गाढ़ी कमाई से दिए गए टैक्स से है। लेकिन छोटे से छोटे शिलान्यास पर भी सीधे मंत्री या यूं कहें कि इन दिनों मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का नाम लिख दिया जाता है और उनकी फोटो छाप दी जाती है। छोटे से छोटे काम को प्रचारित करने के लिए बड़े-बड़े पोस्टर, बैनर और होर्डिंग लगा दिए जाते हैं। लेकिन जब कोई दुखद घटना होती है, तो चुप्पी साध ली जाती है, जैसे कुछ हुआ ही न हो। जिन कार्यों का श्रेय लिया जाता है, उन्हीं कार्यों में कोई गलती या दुर्घटना होने पर कोई सामने नहीं आता।
उदाहरण के लिए, कई पुल, सड़कें और निर्माण उद्घाटन के तुरंत बाद ढह जाते हैं, लेकिन इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ली जाती। दरअसल, अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने वाला एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान AI-171 मेघाणी नगर स्थित सिविल अस्पताल के मेडिकल हॉस्टल से टकरा गया। इसके रोंगटे खड़े कर देने वाले वीडियो केंद्र सरकार को याद दिलाते रहेंगे कि कब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे और सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहेंगे, चाहे केंद्र सरकार इस ओर ध्यान दे या न दे। मौतों के सही और आधिकारिक आंकड़े सामने नहीं आते। या फिर यह कहा जाता है कि हादसे को कौन रोक सकता है।
सड़क और रेल हादसों के शिकार लोगों और ज़्यादातरमृतकों के परिवारों को स्थायी रूप से विकलांग याघायल होने पर कोई मुआवज़ा भी नहीं मिलता।
इसका मतलब यह है कि मौतें मनगढ़ंत खबरें बनकर रह गई हैं, अखबारी शब्दों में समाहित या छिपी हुई, जिन्हें कहीं ऊपर से मैनेज किया जाता है कि कितने मौतों के आंकड़े देने हैं और धीरे-धीरे देने हैं। और यह चलन बन गया है कि कहीं भी, चाहे कोई भी हादसा हो जाए, अगर हमारी सरकार में कोई गलती हुई है, तो उसे बेशर्मी से ढककर गलती को छुपाना या जिम्मेदारी से भागना और जनता को गुमराह रखना होता है। दरअसल, जब किसी पार्टी और उसके नेताओं का लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतना हो, तो जवाबदेही बोझ लगने लगती है। इसीलिए ऐसी पार्टियों की सरकारों में न इस्तीफे होते हैं, न माफी; सिर्फ पीआर कैंपेन चलते हैं। क्योंकि हम भावनाओं से बंधे हुए हैं। अगर हम सरकार या किसी मंत्री पर सवाल पूछते हैं या उंगली उठाते हैं, तो किसी को देशद्रोही करार देना अब आम बात हो गई है।

पार्टियों और सरकारों के लिए यह इसलिए आसान हो गया है क्योंकि हम देशभक्ति, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्ररक्षा, धर्म, संस्कृति को ही अपना सबकुछ मानते हैं और जातिवाद की जंजीरों में जकड़े गए हैं। और मनोविज्ञान कहता है कि जिन बातों पर इंसान, खास तौर पर आम आदमी अपने दिल की गहराइयों से यकीन करता है, उन्हीं बातों की आड़ में उसे आसानी से भावनात्मक और ब्लैकमेल किया जा सकता है। और अगर फिर भी कोई जागरूक नागरिक है और सवाल पूछता है तो उसे राष्ट्र, धर्म और संस्कृति जैसे संवेदनशील शब्दों के खिलाफ बताकर देशद्रोही, धर्मविरोधी, असभ्य और दुश्मन देश का नागरिक करार दे दिया जाता है, ताकि वह सवाल पूछने की बजाय अपना बचाव करने लगे।
यही वजह है कि आज ज्यादातर लोग सवाल नहीं पूछते और जो सवाल पूछते हैं उन्हें देशद्रोही, धर्मविरोधी, पाकिस्तानी या असभ्य कहकर बुनियादी सवालों से दूर रहने पर मजबूर कर दिया जाता है। फिर भी अगर कोई न माने तो उसे पीट दो, मरवा दो या उसके खिलाफ संगीन धाराओं में रिपोर्ट दर्ज करा दो और झूठे मामलों में फंसा दो या जेल भेज दो। यह सब क्या हो रहा है? क्या यह पूछना कोई अपराध है कि किसी दुर्घटना या कमी के लिए कौन जिम्मेदार है? नहीं, यह लोकतंत्र की आत्मा है, जिसे जीवित रखना बहुत जरूरी है। वरना वह दिन दूर नहीं जब आम आदमी भी उसी तरह जंजीरों में बंधा नजर आएगा, जैसे अंग्रेजों ने हमें जकड़ रखा था। इसलिए मेरा मानना है कि लोगों को भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, बल्कि सरकारों और नेताओं के कामकाज पर ध्यान देना चाहिए। वरना दुर्घटनाएं होंगी, अत्याचार होंगे, अपराध होंगे और जवाब देने वाला कोई नहीं होगा। क्योंकि लोकतंत्र में जब जनता सो जाती है, तो सरकार मनमानी करने लगती है।
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